तारागढ -अरावली पहाङी के उतर भाग में हाङा शासकों के कलात्मक महल बने हुए हैं।इन महलों को तारागढ दुर्ग के नाम से जाना जाता हैं।इस दुर्ग का निर्माण 1354 ईं में राव बरसिंह ने करवाया था।दुर्ग के चारों ओर कठोर दीवार का निर्माण किया गया हैं।बूंदी दुर्ग का स्थापत्य राजपूत य मुगल कला के समन्वय का सुन्दर उदाहरण हैं।
दुर्ग के छत्रशाल महल तथा यंत्रशाला को सुन्दर भित्ति चित्रों से सजाया गया हैं,वहीं बादल महल व अनिरूद्ध महल की चित्रशाला में चित्रित भिति चित्र राजस्थान की भिति चित्र परम्परा के सुन्दर उदाहरण है।भवनों की शानदार छतरियाँ व दरबार हॉल के अलंकृत स्तंभ स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं।बूंदी दुर्ग को समय-समय पर दिल्ली सल्तनत व मुगल बादशाहों द्वारा आक्रमण कर इसे क्षति पहुँचाई गई,किन्तु हाङा राजाओं ने हमेशा कङा प्रतिरोध कर इसकी रक्षा की।
दुर्ग के छत्रशाल महल तथा यंत्रशाला को सुन्दर भित्ति चित्रों से सजाया गया हैं,वहीं बादल महल व अनिरूद्ध महल की चित्रशाला में चित्रित भिति चित्र राजस्थान की भिति चित्र परम्परा के सुन्दर उदाहरण है।भवनों की शानदार छतरियाँ व दरबार हॉल के अलंकृत स्तंभ स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं।बूंदी दुर्ग को समय-समय पर दिल्ली सल्तनत व मुगल बादशाहों द्वारा आक्रमण कर इसे क्षति पहुँचाई गई,किन्तु हाङा राजाओं ने हमेशा कङा प्रतिरोध कर इसकी रक्षा की।
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