महान् गणितज्ञ भास्कराचार्य का जन्म 1114 ई. में विज्जङवीक नामक स्थान पर हुआ था।इस स्थान को कुछ लोगों द्वारा बीजापुर (कर्नाटक) तथा कुछ के द्वारा जलगाँव (महाराष्ट्र) में स्थित बताया गया।
भास्कराचार्य के गणित तथा खगोलशास्त्र पर रचित तीन ग्रंथ अधिक प्रसिध्द हैं।
सिद्धान्त शिरोमणि :खगोलशास्त्र के इस मानक ग्रंथ के चार प्रमुख भाग है।
(1) लीलावती
(2) बीजगणितम्
(3) ग्रहगणित
(4) गोलाध्याय
इन चारों को अलग-अलग पुस्तक के रूप में भी माना जाता हैं।इनकी महता इस से पता चलती है कि इनका अनेक देशी-विदेशी भाषा में अनुवाद के साथ ही चार हजार से अधिक टीकाएँ भी उपलब्ध है।
लीलावती-इसमें नौ अध्याय तथा 261 श्लोक है।
बीजगणित-इसमें 12 अध्याय तथा 213 श्लोक हैं।
भास्कराचार्य का योगदान-
(1) धनात्मक संख्या को शून्य से भाग देने पर प्राप्त होने वाली संख्या को खहर नाम दिया ख का अर्थ शून्य अत: खहर का अर्थ जिसके हर में शून्य हो।
(2) लीलावती में क्रमचय और संचय का वर्णन अंकपाश प्रकरण में दिया गया इसी में खण्डमेरू शीर्षक के अन्तर्गत ऐसे त्रिकोण दिए है जिन्हें पास्कल त्रिकोण कहते हैं।
(3) पाई का स्थूल मान 22/7 और सुक्ष्म मान 3.1416 इन्होंने दिया था।
(4) पाइथोगोरस प्रमेय की सरल उपपति को प्रतिपादित किया।
(5) बेलन एवं घन के आयतन के सूत्र क्षेत्र व्यवहार प्रकरण में दिए।
(6) भद्र चतुर्भुज (जादुई वर्ग) बनाने की विधि का उल्लेख भी अपने ग्रन्थों में किया।
भास्कराचार्य के गणित तथा खगोलशास्त्र पर रचित तीन ग्रंथ अधिक प्रसिध्द हैं।
सिद्धान्त शिरोमणि :खगोलशास्त्र के इस मानक ग्रंथ के चार प्रमुख भाग है।
(1) लीलावती
(2) बीजगणितम्
(3) ग्रहगणित
(4) गोलाध्याय
इन चारों को अलग-अलग पुस्तक के रूप में भी माना जाता हैं।इनकी महता इस से पता चलती है कि इनका अनेक देशी-विदेशी भाषा में अनुवाद के साथ ही चार हजार से अधिक टीकाएँ भी उपलब्ध है।
लीलावती-इसमें नौ अध्याय तथा 261 श्लोक है।
बीजगणित-इसमें 12 अध्याय तथा 213 श्लोक हैं।
भास्कराचार्य का योगदान-
(1) धनात्मक संख्या को शून्य से भाग देने पर प्राप्त होने वाली संख्या को खहर नाम दिया ख का अर्थ शून्य अत: खहर का अर्थ जिसके हर में शून्य हो।
(2) लीलावती में क्रमचय और संचय का वर्णन अंकपाश प्रकरण में दिया गया इसी में खण्डमेरू शीर्षक के अन्तर्गत ऐसे त्रिकोण दिए है जिन्हें पास्कल त्रिकोण कहते हैं।
(3) पाई का स्थूल मान 22/7 और सुक्ष्म मान 3.1416 इन्होंने दिया था।
(4) पाइथोगोरस प्रमेय की सरल उपपति को प्रतिपादित किया।
(5) बेलन एवं घन के आयतन के सूत्र क्षेत्र व्यवहार प्रकरण में दिए।
(6) भद्र चतुर्भुज (जादुई वर्ग) बनाने की विधि का उल्लेख भी अपने ग्रन्थों में किया।
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